लेखनी कविता ( प्रकृति ) -12-Feb-2022

 ✍🏻 प्रकृति ✍🏻
मंच को नमन
विषय- पर्यावरण
विधा-  कविता

मानव विकास के होड़ में यूं बढ़ गया,
आज वो खुद ही संकटो से घिर गया,
देख रहे पर्यावरण पर खुद संकट लाया,
आज के हालात का खुद जिम्मेदार पाया,
काट दिए जंगल के जंगल बना दिया कंक्रीट का जंगल धरती पर,
धरती पर रहने नहीं आया प्लॉट काट रहा है मंगल पर, 
मचा हुआ है जो आज महामारी का प्रकोप धरा पर,
कुपति हो गई है प्रकृति मानव के दमनतात्मक कार्य पर,
जल को देखो तालाब गायब-कुएं गायब नलों से बोतलों में बिक रहा है,
विकास के नाम पर जंगल काटते रहे,
अब भी यदि मानव नहीं चेता तो कर रहा है बड़ी गलती,
जब जगा तब सवेरा मानकर सुधार ले अपनी गलती,
हम देख रहे है अस्पतालों में दवा नहीं
और हवा नहीं,
पल पल मौत का कर रहा आज इंतज़ार यहीं,
श्मशानों में भी जगह नहीं है और जलाने को लकड़ी नहीं,
अपने ही हाथों अपने पैरों पर मार रहा है कुल्हाड़ी यहीं,
जो भी बच जा रहे इस महामारी से वो भी करें आज प्रतिज्ञा,
हो जाय वो भी जो ऑक्सीजन के लिए तरस रहे है वो भी करें प्रतिज्ञा
सब मिलकर एक-एक नहीं  लगाए कई पेड़ भरपूर,
इस धरती को फिर से करें हम मिलकर रहाभरा,
पर्यावरण प्रदुषण की चपेट में आया
पर्यावरण को मानव ने खूब ही सताया
फिर भी इस मानव को अब भी समझ नहीं आया !!
                       ✍🏻 वैष्णव चेतन"चिंगारी" ✍🏻
                              गामड़ी नारायण
                                      बाँसवाड़ा
                                     राजस्थान
यह रचना मेरे द्वारा स्वरचित मौलिक अप्रकाशित है

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4 Comments

Swati chourasia

12-Feb-2022 05:01 PM

Very beautiful 👌

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Natash

12-Feb-2022 10:50 AM

👍👍👍

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